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जेन मास्टर और शराबी शिष्य | जेन मास्टर कहानी

जेन मास्टर और शराबी शिष्य

जेन मास्टर और शराबी शिष्य
Image via: Pixabay

जापान के ओकीनावा सहर में एक जेन मास्टर रहते थे। जेन मास्टर बहुत ही विनम्र और ज्ञानी थे और इसी कारण से जेन मास्टर पूरे शहर में प्रसिद्ध थे। जेन मास्टर की प्रसिद्धि के कारण दूर-दूर से लोग उनके शिष्य बन कर ज्ञान हासिल करने आते थे और इसी कारण से जेन मास्टर के सैकड़ों शिष्य थे।

जेन मास्टर के सभी शिष्य जेन मास्टर की आज्ञा का पालन करते थे और उनके द्वारा बनाए गए सभी नियमों को अच्छी तरह फॉलो करते थे। हालांकि उन सभी शिष्यों में से एक शिष्य ऐसा भी था जोकि शराब पीता था और जेन मास्टर द्वारा बनाए गए नियमों का ठीक से पालन नहीं करता था। शराबी शिष्य के दुर्गुणों के कारण आश्रम के बाकी सभी शिष्य उससे दूरी बनाकर रखते थे और उससे बात करना भी पसंद नहीं करते थे।

जेन मास्टर ने अपना पूरा जीवन लोगों का भला करने और आश्रम में शिष्यों को ज्ञान देने में गुजार दिया था लेकिन अब जेन मास्टर यह सब करने में अक्षम थे क्योंकि जेन मास्टर बूढ़े हो चुके थे और इसी कारण से बहुत जल्द वे अपना उत्तराधिकारी चुनने वाले थे। आश्रम में शिष्यों के बीच उत्तराधिकारी को लेकर चर्चा होने लगी। सभी शिष्य यही मान रहे थे की जेन मास्टर सबसे अधिक आज्ञाकारी और गुणवान शिष्य को ही अपना उत्तराधिकारी चुनेंगे लेकिन जेन मास्टर ने उन सभी को चौंकाते हुए उस शिष्य को अपना उत्तराधिकारी चुना जोकि शराब पीता था।

जेन मास्टर द्वारा लिए गए फैसले से आश्रम का कोई भी शिष्य खुश नहीं था। एक शिष्य ने तो जेन मास्टर को बुरा भला भी कह दिया लेकिन जेन मास्टर ने उस शिष्य को पलटकर जवाब नही दिया। कुछ समय बाद जेन मास्टर ने सभी शिष्यों को बुलाया और कहां की पुत्रों में अपना उत्तराधिकारी केवल उसी व्यक्ति को चुन सकता था जिसे में अच्छी तरह से जानता हु। इसमें कोई संदेह नहीं है की तुम सभी गुणवान हो लेकिन तुम सभी ने हम्मेषा मेरे सामने केवल अपनी अच्छाई और गुणों को ही उजागर किया है और अपने दुर्गुणों को कभी मेरे सामने नहीं आने दिया जोकि बहुत खतरनाक है, क्योंकि अक्सर इन गुणों के पीछे व्यक्ति की असहिष्णुता, ईर्षा, घमंड और गर्व जैसे दुर्गुण छिपे रह जाते है। 

अपने उत्तराधिकारी के रूप में मेने एक शराब पीने वाले व्यक्ति को इसी लिए चुना क्योंकि में इस व्यक्ति के गुणों के साथ साथ दुर्गुणों से भी अच्छी तरह परिचित हु यानी की में इस व्यक्ति को बहुत ही अच्छी तरह जानता हु। 

सार: इस कहानी से हमे यह सिख मिलती है की हमे अच्छी और मीठी बाते करने वाले लोगों पर आसानी से भरोसा नही करना चाहिए क्योंकि अक्सर अच्छी और मीठी बाते करने वाले लोगों के दिलों में बुराई और दुर्गुण मौजूद होते है जिन्हे हम देख नही पाते। 

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